कटघरे में भगवान! यहां गलती पर देवी-देवताओं को भी मिलती है ‘सजा’, जानिए क्यों होता है ऐसा?
छत्तीसगढ़ में कई ऐसी परंपराएं हैं, जो आदिम संस्कृति की पहचान बन गयी हैं. कुछ ऐसी ही परपंरा धमतरी जिले के वनाचंल इलाके में भी दिखाई देती है. यहां गलती करने पर देवी-देवताओं को भी सजा मिलती है. ये सजा बकायदा न्यायाधीश कहे जाने वाले देवताओं के मुखिया देते हैं. वहीं देवी-देवताओं को दैवीय न्यायालय की प्रक्रिया से भी गुजरना पड़ता है. इस यात्रा में हजारों की संख्या में आदिवासी समाज के लोग पहुंचते हैं, जहां अनोखी परम्परा निभाई जाती है. दरअसल, धमतरी जिले के अंतिम छोर में बसे कुर्सीघाट बोराई में हर साल भादों महीने की इस नियत तिथि पर आदिवासी देवी-देवताओं के न्यायाधीश भंगा राव माई की यात्रा होती है, जिसमें बीस कोस बस्तर और सात पाली उड़ीसा सहित सोलह परगना सिहावा के देवी देवता शिरकत करते हैं. सदियों से चल आ रही है इस अनोखी प्रथा और न्याय के दरबार का साक्षी बनने 31अगस्त शनिवार को हजारों की तादाद में लोग पहुंचे हैं. इस यात्रा के इलाके के सभी वर्ग और समुदाय के लोगों की आस्था जुड़ी है. कुवरपाट और डाकदार की अगुवाई में यह यात्रा पूरे विधि-विधान के साथ संपन्न किया जा रहा है. कुर्सीघाट में सदियों पुराना भंगाराव माई का दरबार है. इसे देवी-देवताओं के न्यायालय के रूप में जाना जाता है. ऐसा माना जाता है कि भंगाराव माई की मान्यता के बिना क्षेत्र में कोई भी देवी-देवता काम नहीं कर सकता है. वहीं इस विशेष न्यायालय स्थल पर महिलाओं का आना प्रतिबंधित है. मान्यता है कि आस्था व विश्वास के चलते देवी-देवताओं की लोग उपासना करते हैं, लेकिन वहीं देवी-देवता अपने कर्तव्य का निर्वहन न करें तो उन्हें शिकायत के आधार पर भंगाराव माई सजा देते हैं. सुनवाई के दौरान देवी-देवता एक कठघरे में खड़े होते हैं. यहां भंगाराव माई की उपस्थिति में कई गांवों से आए शैतान, देवी-देवताओं की एक-एक कर शिनाख्ती की जाती है. इसके बाद आंगा, डोली, लाड, बैरंग के साथ लाए गए मुर्गी, बकरी, डांग को खाईनुमा गहरे गड्ढे किनारे फेंक दिया जाता है, जिसे गांववाले इसे कारागार कहते हैं. पूजा-अर्चना के बाद देवी-देवताओं पर लगने वाले आरोपों की गंभीरता से सुनवाई होती है. आरोपी पक्ष की ओर से दलील पेश करने सिरहा, पुजारी, गायता, माझी, पटेल सहित गांव के प्रमुख उपस्थित होते हैं. दोनों पक्षों की गंभीरता से सुनवाई के बाद आरोप सिद्ध होने पर फैसला सुनाया जाता है. मान्यता है कि दोषी पाए जाने पर इसी तरह से देवी-देवताओं को सजा दी जाती है. मनोज साक्षी ने बताया कि इस साल यह यात्रा इसलिए और महत्वपूर्ण हो गई है. क्योंकि कई पीढ़ी बाद इस बार देवता ने अपना चोला बदला है. बहरहाल देवी-देवताओं को इंसाफ के लिए जाना जाता है. अदालतों से लेकर आम परंपराओं में भी देवी-देवताओं की कसमें खाई जाती हैं, लेकिन उन्हीं देवी-देवताओं को यदि न्यायालय की प्रक्रिया से गुजरना पड़े तो यह वाकई में अनूठी परंपरा है जो इस आधुनिकता के दौर में शायद कहीं दिखाई दे.